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प्रेमी वृक्ष: नागा लोक-कथा

('आओ' प्रेम कथा)

बहुत पुरानी बात है, किसी गाँव में एक धनवान व्यक्ति रहता था जिसकी एक अतिसुन्दर कन्या थी। उसकी सुन्दरता के कारण गाँव के अनेक युवक उससे विवाह करना चाहते थे किन्तु वह सभी विवाह प्रस्ताव को ठुकरा देती थी। इसका कारण था कि वह एक ऐसे व्यक्ति से प्रेम करती थी जिसका मुख उसने कभी नहीं देखा था। वह युवक प्रति रात्रि उससे 'चिकि' में मिलने आता था, और भोर होने से पूर्व लौट जाता था। वह दिन के समय नवयुवकों में उसे पहचानने का असफल प्रयत्न करती। अन्ततः उसने अपने माता-पिता को अपनी व्यथा कह सुनाई।

उसके पिता ने उसके प्रेमी को ढूँढ कर देने का आश्वासन दिया तथा स्वयं भी उस व्यक्ति को खोजने का दृढ़ निश्चय किया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह 'चिकि' के समय झाड़ियों में छिपकर निगरानी करने लगा।

प्रेमी युवक कन्या से भेंट के बाद जब लौटने लगा, तो कन्या के पिता ने उसका पीछा किया। किन्तु वह व्यक्ति किसी 'मोरंग' में जाने के स्थान पर, सीधा चलता हुआ गाँव से बाहर निकल गया। उसी प्रकार चलता हुआ वह गाँव के जलस्रोत के उद्गम के स्थान के सामने जाकर रुका। तुरन्त ही उसने अद्भुत परिवर्तन होने लगे - देखते ही देखते उसकी बाहें शाखाएं बन गयीं, बाल पत्तियां बन गये, कान के कुण्डल बेर में बदल गये - अब उस स्थान पर युवक नहीं, हरा भरा वृक्ष खड़ा था। कन्या का पिता अचम्भित सा यह दृश्य देखता रह गया।

घर लौटकर कन्या के पिता ने वृक्ष को काटने का निश्चय किया। प्रातःकाल होने पर जब पूर्ण प्रकाश फैल गया, तो वह अपने साथ कुछ व्यक्तियों को लेकर वृक्ष काटने गया। जाने से पूर्व उसने अपनी पुत्री को घर के अन्दर रहने का निर्देश दिया।

जलस्रोत पर पहुँचकर वे सब वृक्ष काटने में जुट गए। वे सब आश्चर्य चकित थे क्योंकि वे वृक्ष काटते जाते थे किन्तु वृक्ष नीचे नहीं गिरता था। वे फिर भी वृक्ष काटते रहे, तभी एक ध्वनि के साथ वृक्ष फट गया और उसके छोटे छोटे टुकड़े धरती पर दूर तक बिखर गए। वृक्ष का एक छोटा सा टुकड़ा उड़ता हुआ उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ सुन्दर कन्या उत्सुकतावश दीवार से झांक रही थी, उसकी आँख के माध्यम से उसके मस्तिष्क में घुस गया और उसकी भी तुरन्त मृत्यु हो गयी। इस प्रकार दोनों प्रेमियों का अन्त हुआ।

यह वृक्ष आओ जनजाति के चोंगली उपकुल के पोंगेन वर्ग से सम्बन्धित 'संगवार' नामक वृक्ष था, अतः इस वर्ग के लोग, इस वृक्ष की लकड़ी के बने पलंग पर नहीं सोते।

(चिकि=कुँवारी लड़कियां रात्रि मे 'चिकि' नामक विशेष रूप से बनाए गए शयनकक्षों में सोती हैं;
मोरंग=होस्टल के समान कुँवारे लड़कों के सोने का स्थान है।)

(सीमा रिज़वी)

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साभारः लोककथाओं से साभार।

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1 Comments

Farhat

25-Nov-2021 03:21 AM

Good

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